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हस्तरेखा परिचय
हस्तरेखा का ज्ञान मानव की भविष्य को जानने के प्रति उत्सुकता का ही परिणाम है। भविष्य जानने के बहुत से उपाय हैं जिनको अलग अलग देशों की अपनी अपनी सभ्यताओं के आधार पर सदियों के अनुभव के आधार पर प्रतिपादित किया । इन्हीं में से हस्तरेखा भी एक है।
हस्तरेखा से भविष्य जानने की शुरूआत सबसे पहले भारतीय विद्वानों ने शुरू की। हस्तरेखा को सम्पूर्ण विश्व में सबसे पहले लिपिबद्ध भी भारतीय मनीषियों ने ही किया। यही कारण है कि भारत में हस्तरेखा पर पौराणिक ग्रंथ उपलब्ध हैं। समय समय पर भारत भ्रमण पर आने वाले विदेशी विद्वानों ने इसका प्रचार प्रसार अपने अपने देश में भी न्यूनाधिक रूप में किया। यूरोप के देशों में इसका प्रचार प्रसार 19 वीं सदी में हुआ, जब कीरो नाम के विद्वान ने धर्मगुरुओं से लोहा लेते हुए भी हस्तरेखा विज्ञान को प्रबलता के साथ स्वीकर्यता दिलवाने की कोशिश की। कीरो ने अपने सभी ग्रंथों में ज्योतिष और हस्तरेखा आदि के ज्ञान के प्रणेता के रूप में भारत देश के विद्वानों की भूरि भूरि प्रशंसा भी की है।
हस्तरेखा द्वारा भविष्य को जानने के लिए सिर्फ हाथ की रेखाओं का ही विश्लेषण नहीं किया जाता बल्कि हाथ की रेखाओं के साथ हथेली की बनावट, हथेली की त्वचा का रंग, हथेली की त्वचा की प्रकृति, अंगुलियों की आकृति, अंगुलियों का झुकाव, अंगुलियों की बनावट, अंगुलियों पर बने चिन्ह, हथेली पर पर्वतों का उठाव व स्थिति, नाखूनों की आकृति, रंग व बनावट व उनपर बने काले या सफेद चिन्ह, मणिबन्ध आदि सभी का एक समान विश्लेषण किया जाता है। इनमें से एक भी तथ्य को अनदेखा कर देने पर भविष्य कथन अधूरा रह जाता है।
एक सामान्य व्यक्ति शब्दों में कभी अपनी बात को पूर्ण रूप से नहीं कह सकता लेकिन उसका हाथ वो सब बातें भी पूरी तरह व्यक्त कर देता है; जो गुप्त बातें सिर्फ वही इंसान अपने बारे में जानता है और जो बात वो व्यक्ति कहना भी नहीं चाहता है वो बातें भी उसके हाथ स्पष्ट कह देते हैं।